मंदिर जाते समय हाथी को व्यस्त बाजार से होकर गुजरना पड़ा। वहाँ एक फूलवाला उसे प्रतिदिन गेंदे की माला देता, जबकि एक फलवाला उसे फल देता। इन उपहारों के लिए हाथी उन दोनों का बहुत आभारी था। बाजार में लोग हाथी के चारों ओर इकट्ठा हो जाते थे और उसे धीरे से थपथपाकर अपना स्नेह प्रदर्शित करते थे। उनके लिए उनके मन में बहुत आदर था।
एक दिन फूल वाले ने हाथी पर थोड़ा मज़ाक करने का सोचा। अगले दिन जब हाथी उसकी दुकान पर पहुंचा तो उसने हमेशा की तरह उसे माला देने के बजाय सूंड़ में सुई चुभो दी, जिससे वह माला बनाता था।
हाथी दर्द से कराह उठा और जमीन पर बैठ गया। कुछ लोग उसके चारों ओर जमा हो गए और हंसने लगे।
इससे हाथी को फूलवाले पर बहुत गुस्सा आया। उस दिन वह मंदिर नहीं गया, बल्कि पास के एक गंदे तालाब में चला गया। तालाब पर उसने अपनी लंबी सूंड में कुछ गंदा पानी इकट्ठा किया और वापस फूलवाले की दुकान पर आ गया। वहां उसने फूलवाले और दुकान में रखी मालाओं और फूलों पर गंदा पानी फेंककर अपनी सूंड खाली कर दी। फूल और मालाएं मैली हो गईं और बाजार में नहीं बिक सकीं। इस प्रकार फूलवाले को अपनी इस शरारत का भारी नुकसान उठाना पड़ा।
नैतिक: जैसे को तैसा