एक दिन सेवाराम नाम के एक ब्राह्मण ने बीरबल से मदद मांगी। उन्होंने कहा कि उनके पूर्वज संस्कृत के महान विद्वान थे और लोग उन्हें आदरपूर्वक पंडितजी के रूप में संदर्भित करते थे।
उन्होंने कहा कि उनके पास न पैसा था और न ही दौलत की जरूरत थी, वह सादा जीवन जी रहे थे। लेकिन उनकी एक ही ख्वाहिश थी। उनकी इच्छा थी कि लोग उन्हें पंडित जी के नाम से भी पुकारें। उन्होंने बीरबल से पूछा कि वह इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं।
बीरबल ने कहा कि कार्य काफी सरल था। यदि ब्राह्मण उनकी सलाह शब्द का पालन करता, तो यह कार्य प्राप्त किया जा सकता था। बीरबल ने ब्राह्मण को सलाह दी कि अब से जो कोई भी उन्हें पंडितजी कहेगा, उस पर चिल्लाओ।
अब उसी गली में रहने वाले बच्चे ब्राह्मण को पसंद नहीं करते थे क्योंकि वह उन्हें अक्सर डांटता था। वे बस उसके पास वापस आने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। बीरबल ने बच्चों से कहा कि अगर वे उन्हें पंडित जी कहने लगेंगे तो ब्राह्मण बहुत चिढ़ जाएगा। बच्चे उन्हें पंडितजी कहने लगे और ब्राह्मण ने बीरबल की सलाह के अनुसार उन पर चिल्लाना शुरू कर दिया।
बच्चों ने आस-पड़ोस के सभी बच्चों में यह बात फैला दी कि सेवाराम को पंडितजी कहलाने से नफरत है, इसलिए वे बारी-बारी से उन्हें पंडितजी कहने लगे। थोड़ी देर के बाद सेवाराम उन्हें डाँट-फटकार कर थक गया पर सब लोग उन्हें पंडितजी कहने के आदी हो चुके थे। इसलिए खेल खत्म हो गया लेकिन नाम अटक गया।